लोकसभा चुनाव 2024 के पहले नीतीश की जमीन तैयार करने के लिए अध्यक्ष बने आरसीपी सिंह?

पटना। जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार साल 2010 में राज्यसभा सदस्य के रूप में एक आईएएस अधिकारी अपने प्रमुख सचिव रहे राम चंद्र प्रसाद सिंह उर्फ आरसीपी सिंह के नामांकन की घोषणा की थी तो यह जनता दल (यूनाइटेड) के कई नेताओं के लिए आश्चर्य की बात थी। लगभग एक दशक के बाद नीतीश रविवार को एक बार फिर आश्चर्यचकित किया। जब उन्होंने जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद छोड़ने की घोषणा की और पार्टी की दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में उनकी जगह आरसीपी सिंह को नियुक्त किया। नीतीश कुमार से लेकर आरसीपी सिंह तक पद का हस्तांतरण उतना ही आसान रहा जितना कि सिंह के राज्यसभा में नामांकन के साथ एक दशक पहले की राजनीति में एंट्री। नीतीश 2022 तक इस पद पर बने रह सकते थे क्योंकि उन्हें 2019 में तीन साल के लिए जदयू अध्यक्ष के रूप में चुना गया था। लेकिन उन्होंने 2020 के बिहार विधानसभा चुनावों के बाद बदली हुई राजनीतिक परिस्थितियों में इस पद को छोड़ना पसंद किया जिसमें भाजपा को 74 सीटें मिली और जदयू केवल 43 सीटें जीत सकी। 


बैठक में नीतीश कुमार ने कहा था'मैं मुख्यमंत्री भी नहीं रहना चाहता। एनडीए को अपने नेता का चुनाव करना चाहिए। भले मुख्यमंत्री भाजपा का हो मुझे कोई समस्या नहीं होगी। मैंने पहले राजग नेताओं से इसकी इच्छा व्यक्त की थी। लेकिन मुझे शीर्ष नेतृत्व के अपार दबाव के कारण मुख्यमंत्री का पद स्वीकार करना पड़ा।' मुख्यमंत्री की नजर अरुणाचल प्रदेश में भाजपा द्वारा पार्टी के छह विधायकों के अवैध शिकार और कई मुद्दों पर सोशल मीडिया पर चलाए जा रहे निगेटिव कैंपेन पर भी नज़र थी। उन्होंने कहा कि अरुणाचल प्रदेश में पार्टी के एक विधायक ने दिखाया कि ताकत पार्टी में है। लोग समाज में नफरत पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन हमने हमेशा ऐसे मुद्दों पर एक ठोस रुख अपनाया।' आरसीपी सिंह को नेतृत्व का हस्तांतरण बिहार में सत्तारूढ़ जदयू में पीढ़ीगत बदलाव का संकेत है और आने वाले दिनों में पार्टी कड़ा रुख अख्तियार कर सकती है। इसका मतलब यह है कि पार्टी नेतृत्व की नई पीढ़ी अब राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर सहयोगी दलों और राजनीतिक दलों से निपटेगी। केवल 43 विधायकों के साथ राज्य विधानसभा चुनावों में खराब प्रदर्शन के बाद अब जदयू की नई टीम से जुझारू भाजपा का मुकाबला करने की उम्मीद है। मंत्रिमंडल विस्तार में देरी भाजपा और जदयू के बीच प्रमुख विभागों का बंटवारा, अरुणचाल प्रदेश में भाजपा नेताओं द्वारा छह जदयू विधायकों को तोड़ने के मामलों में दोनों ओर से टीका-टिप्पणी हुई। पूर्व केंद्रीय मंत्री संजय पासवान मुख्यमंत्री को गृह मंत्रालय का पोर्टफोलियो छोड़ने और इसे भाजपा को सौंपने का सुझाव दिया। दरअसल फिलहाल वर्तमान राज्य के गृह सचिव को बदलने की मांग कर रही है जो एक मुस्लिम है और पिछले कई वर्षों से इस पद पर बने हुए हैं। अगर NDA के दो प्रमुख घटक के बीच बढ़ते विवाद पर ध्यान नहीं दिया गया तो स्थितियां गंभीर हो सकती हैं। हालांकि शीर्ष जदयू और भाजपा नेताओं ने अब तक स्थिति को सरसरी और शिथिलता से निपटाया। अरुणाचल मुद्दे पर भाजपा यह कहते हुएडैमेज कंट्रोल करने की कोशिश की कि उन्होंने विधायकों से कुछ नहीं कहा लेकिन कुछ असंतुष्ट विधायकों ने खुद ही पाला बदल लिया। वहीं जदयू ने कहा कि गठबंधन में दलों को गठबंधन कोड के अटल मॉडल का पालन करना चाहिए। नए अध्यक्ष आरसीपी सिंह संतुलित नेता माने जाते हैं। उनसे उम्मीद है कि वे एनडीए को बरकरार रखते हुए भाजपा से निपटेंगे। साथ ही वह अपने् विधायकों को एकजुट रखने का काम होंगे क्योंकि बिहार में भाजपा का रुख करने वाले जदयू विधायकों की संख्या कम है। एक नौकरशाह से जदयू अध्यक्ष तक आरसीपी सिंह एक लंबा सफर तय किया। जबसे उन्हें पार्टी मामलों का प्रभार दिया गया। उन्होंने सफलतापूर्वक राज्य से लेकर पंचायत स्तर तक के नेताओं की अपनी टीम बनाई। वह पार्टी नेताओं के बीच अधिकार का काम करते थे और राज्य विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए नए चेहरों को लाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। सिंह 2014 के चुनावों से पहले नीतीश कुमार को संभावित प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश करने में भी सक्रिय थे। उन्होंने उत्तर प्रदेश में एक आईएएस अधिकारी के रूप में कार्य किया आरसीपी सिंह नीतीश को देश के सबसे बड़े नेता के रूप में पेश करने के लिए यूपी में एक बैठक आयोजित की थी। अगर भाजपा -जदयू गठबंधन जारी रहती है तो नीतीश केंद्रीय राजनीति में अग्रिम पंक्ति की भूमिका निभा सकते हैं। वह भविष्य में केंद्रीय संवैधानिक पदों या केंद्रीय मंत्रिपरिषद में वरिष्ठ पद भी पा सकते हैं अगर वह भाजपा से किनारा करने का फैसला करते हैं तो वह 2024 के आम चुनावों से पहले विपक्षी राजनीति में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।